Friday, July 24, 2020

उस नरगिस की ओर

रो मत
तन्हा हो तो इन्सान हो
ज़िंदा हो तो
तन्हाई के साथ हो

उस फ़ोन के बजने का इंतज़ार कर मत
जो कभी नहीं आता
बर्फ में राह बर्फीले हैं चलने के लिए 
बारिश में राह गीले हैं चलने के लिए

तन्हा है ईख के खेत में चिड़िआ भी
तुम्हे देख रही है
तन्हा है ऊपर बैठा भगवान् भी 
कभी कबार रोता है

तन्हा है पंछी भी
डाली पे जा बैठता है
तन्हा है इंसान जो
सागर का किनारा ढूंढ़ता है

तन्हा है पहाड़ की परछाई भी
दिन में जो एक बार नीचे आती है
तन्हा है बजता हुआ वोह घंटा भी
जो खुद के लिए गूंजता है





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