किसी साधारण सी शाम में,
जब कल्पना अँधेरे में समाती है,
अकेलेपन की चौखट पर,
जब कविता भी साथ छोड़ जाती है,
मन चक्क्षु से दृष्टिहीन हो कर,
शायर भी टूट जाया करते हैं।
टूटे हुए शायर अक्सर,
खुद से बातें करते हैं,
निर्जीव वस्तुओं में भी,
सरासर ही जीवन भरते हैं।
ऐसे एक शायर का चश्मा,
आक्स्मयक जीवित हो जाता है,
कुछ दिल से बातें करता है,
कुछ यूं फिर वोह इतराता है।
एक शायर का चश्मा,
दुनिया देखा करता है,
टेढ़ी-मेढ़ी दुनिया को,
बार-बार ये सीधा करता है।
बेरंगी-फीकी सी दुनिया,
में ये रंग भी भरता है,
रोते हस्ते अचंभ कुछ चेहरे,
इसी में सिमटा करते हैं,
महफ़िल मय्यत सब के नज़ारे,
इसी से गुज़रा करते हैं।
नगमों पे वाह वाह मिलती है,
लोग कहते हैं दिल से लिखता है,
शब्द जो दिल को छूते हैं,
शायर के चश्मे से परखा करते हैं।
- अ.प.स.
Here is the transliteration for those who can't read hindi.
जब कल्पना अँधेरे में समाती है,
अकेलेपन की चौखट पर,
जब कविता भी साथ छोड़ जाती है,
मन चक्क्षु से दृष्टिहीन हो कर,
शायर भी टूट जाया करते हैं।
टूटे हुए शायर अक्सर,
खुद से बातें करते हैं,
निर्जीव वस्तुओं में भी,
सरासर ही जीवन भरते हैं।
ऐसे एक शायर का चश्मा,
आक्स्मयक जीवित हो जाता है,
कुछ दिल से बातें करता है,
कुछ यूं फिर वोह इतराता है।
एक शायर का चश्मा,
दुनिया देखा करता है,
टेढ़ी-मेढ़ी दुनिया को,
बार-बार ये सीधा करता है।
बेरंगी-फीकी सी दुनिया,
में ये रंग भी भरता है,
रोते हस्ते अचंभ कुछ चेहरे,
इसी में सिमटा करते हैं,
महफ़िल मय्यत सब के नज़ारे,
इसी से गुज़रा करते हैं।
नगमों पे वाह वाह मिलती है,
लोग कहते हैं दिल से लिखता है,
शब्द जो दिल को छूते हैं,
शायर के चश्मे से परखा करते हैं।
- अ.प.स.
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